भाग (1)
जिस दिन मैंने पहली पहली बार शीतल को देखा, उसे देख कर मन वात्सल्य भाव से भर गया। वह पहला दिन, मेरी शादी के बादससुराल का था ।मैंने जैसे ही अपनी ससुराल में उसे देखा तो प्यार करने के लिए अपनी गोद में ले लिया और वह भी ऐसे लिपट गई जैसेउसका मेरा पुराना कोई रिश्ता हो।
वह चार वर्ष की बच्ची शीतल मेरे पास ही बैठी रही । अपनी बाल सुलभ बोली में सब का मन मोह रही थी ।
ससुराल में मैं दुल्हन के रूप में बैठी थी,महिलाएँ मेरी मुँह दिखाई करने के लिए आ रहीं थीं । वह मेरे पास बैठी हर आने वाली महिला कोबता रही थी, यह मेरी चाची जी हैं और मेरे मुँह से पर्दा हटा देती। जैसे ही वह पर्दे (घूँघट)को हटाती शर्म से मेरी ऑंखें झुक जाती और वहकहती “चाची जी को नींद आ रही है, जाओ अपने घर कल आना ।” उसकी बातें सुनकर सभी हँस रहे थे ।
शीतल की मॉं(मेरी भाभीजी)ने उसे प्यार से अपने पास बुलाया और समझाया कि आने वालों से इस प्रकार नहीं कहते । उस प्यारीबच्ची को नहीं पता था कि महिलाएँ एक नई दुल्हन को क्यों देखने आ रहीं हैं ।
जहॉ मैं बैठी थी वहीं मेरी बड़ी भाभीजी (जेठानी)बैठी थीं, जो महिलाएँ शगुन का लिफ़ाफ़ा या गिफ़्ट दे रहीं थीं उन्हें एक बड़े से बैग मेंरखती जा रहीं थीं। शीतल यह सब बड़े ही ध्यान से देख रही थी । जो क़रीब के रिश्तेदार आये, वह सोने-चॉदी के गहने भी दे रहे थे ।
तभी शीतल अपनी छोटी बहिन सोनू जो कि लगभग ढाई वर्ष की थी उसे लेकर आई । एक दुपट्टा साथ लेकर
उसके सिर पर से डाल दिया और बोली मेरी चाची जी को नींद आ रही है । अब जिसे भी देखना है सोनू को देख लेना । मैंने इसे दुपट्टे सेदुल्हन बना दिया है ।उसकी बातें सुनकर सभी हंसने लगे, वह सबको देख कर नहीं समझ पाई कि वह क्यों हँस रहे हैं । वह ज़ोर-ज़ोर सेरोने लगी।
जब मैं अपने घर से विदा हो रही थी ।जिस प्रकार शायद मुझे रोना आया था और मेरे परिवार में सब रो रहे थे उसने देखा था, वह उसीतरह नक़ल कर रही थी ।
सब हँस कर कह रहे थे कि तुम क्यों रो रही हो,उसका जबाब यही रहा कि चाची जी भी तो रो रही थी ।अब हम और सोनू की बारी हैऔर उसे दुल्हन की तरह ज़बरदस्ती बैठा दिया । उसे कुछ समझ नहीं आया, वह दहाड़े मार कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी ।
वह नन्ही शीतल स्कूल जाने लगी । कुछ वर्ष बाद सोनू भी स्कूल जाने लगी। मैं भी ससुराल से दूर अपने पति की नौकरी वाले शहरमें रहते हुए परिवार में व्यस्त हो गई ।कभी-कभी त्यौहार और किसी कार्य क्रम में सबका मिलना होता सभी बड़े प्यार से मिलते ।
धीरे-धीरे शीतल बड़ी हुई,उसके लिए दूसरा परिवार देखा जाने लगा ।एक सुंदर और आकर्षक वेतन पाने वाले लड़के के साथ रिश्तातय हो गया ।
शीतल के पिता अध्यापक होने की वजह से शादी जून में करना चाहते थे । परिवार के सभी बच्चों की छुट्टियाँ भी होती हैं ।सब लोगोंकी रज़ामंदी से जून के अंतिम सप्ताह में मुहूर्त रखा गया ।
उनका मानना था कि बीस मई से स्कूल का अवकाश हो जाने पर तैयारियों के लिए समय भी मिल जायेगा और सब आ भी जायेंगे।
हम सब को शादी का बेसब्री से इंतज़ार था, लेकिन अधिक दिनों पहले नहीं जा पाये मेरे बच्चे इंटर के बाद प्रवेश परीक्षाओं कीतैयारी में व्यस्त थे ।
शादी में जाने के लिए सभी ने फ़ैंसी ड्रेस ख़रीद लीं ।
मैंने बनारसी साड़ी ली जो कि शादी के मुख्य समारोह में पहनने का मेरा विचार था । अन्य साड़ियाँ भी अलग-अलग समारोह के हिसाब सेतैयार कर लीं बस अब तो जाने की पूरी तैयारी थी ।
आख़िर हम शीतल के पास पॉंच दिन पहले पहुँच ही गये । जब उससे मिले तो ऐसा लगा जैसे वहीं चार वर्ष की बेटी मेरी बाँहों में बैठकर लाड़ लड़ा रही है ।
लग्नपत्रिका लिखी जाने लगी, पंडित जी ने कहा—कन्या को लाइये, तो वह मुझसे लिपट गई । मैंने उसके हाथों में अनाज(गेहूं) रखे, उसे पकड़ कर पंडित जी के पास चौक पर बैठाया । उसकी ऑंखें में ऑंसू देखकर मैं वहाँ से उठकर दूसरी जगह बैठ गई । वह कामसम्पन्न हुआ तो वह ऐसे रो रही थी कि जैसे आज ही हम सब से दूर जा रही हो । पूरा दिन हंसी-मज़ाक़ करते हुए बीत गया ।
अगले दिन मेहंदी का कार्य क्रम होना था, उसके लिए मेहंदी लगाने वाली का इंतज़ाम किया गया । उसकी इच्छानुसार मेहंदी लगवाकर में अन्य कामों में व्यस्त हो गई । रात्रि के समय गीतों का कार्यक्रम होने के बाद सभी अपने-अपने स्थान पर जाकर सो गये ।
घर में अनेक रिश्तेदार आ चुके थे, चहल- पहल हो रही थी । आज हल्दी,तेल लगाने का कार्य क्रम हुआ सबने ख़ूब मस्ती की ।परिवार के सभी बच्चे लगभग इकट्ठे है ख़ूब धमा-चौकड़ी हो रही है शीतल भी बहुत खुश है । सोनू भी अपनी मनपसंद ड्रेस पहन करइठलाती हुई मस्ती में है क्योंकि आज बड़ी बहिन की शादी जो है। दोनों बहिन होने के साथ दोस्त भी बहुत पक्की हैं ।
प्रतिदिन गीतों की बहार है नॉंच-गाना ख़ूब हो रहा है । सभी बच्चे-बड़े मस्ती कर रहे हैं ।
आज शीतल ने मुझे बुलाया और कहा—आज शादी है चाची, ब्यूटी पार्लर मैं आपके साथ ही जाऊँगी,आप समय से चलने को तैयाररहना ।
मैंने कहा—हॉं ठीक है मेरी लाडो ।
नियत समय पर वह मेरे साथ ही जाने की ज़िद करने लगीं जबकि और लोग भी उनके साथ जाने को तैयार थे।
मैं उनके साथ चली गई, पार्लर वाली मेरी पहचान की थी मैं उसका सब सामान देकर आ गई ।
घर पर कुछ काम मुझे सौंप रखे थे उन्हें पूरा कर मैं तैयार होकर शीतल को लेने चली गई ।शादी बैकंटहाल में होने के कारण, वहाँपहुँचाने के लिए कार आ गई ।हम लोग कार में बैठे ही थे कि वर्षा होने लगी । धीरे-धीरे वर्षा हो रही थी, थोड़ी ही देर में भयानक बिजलीकड़कते हुए मूसलाधार वर्षा होने लगी ।
शीतल को कार में से उतारा तो वहॉं पानी भरा हुआ था । बहुत ही मुश्किल से गहने और लहंगा सम्भालने के बाद उतारा । एकाएकमेरा पैर पानी में गया तो मेरी बनारसी साड़ी आधी बुरी तरह से गीली हो गई ।
शीतल को वहाँ पहुँचाकर घर भी जाना था क्योंकि बच्चे घर पर ही थे उन्हें तैयार भी करना,कपड़े पहनाना आवश्यक था । जिस रास्तेपर जाना था घर पहुँचने के लिए वह पूरा पानी से भरा था । जहॉं मंडप और स्टेज था वहाँ भी सब अस्त -व्यस्त देख कर मन बड़ा हीपरेशान हो गया ।
बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, शायद जून के अंतिम सप्ताह में गर्मी बहुत थी । उसे शान्त करने के लिए मानसून ने अपनीज़िम्मेदारी संभाल ली थी और हम अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए बरसते में ही जा रहे थे ।
क्रमशः